Tuesday, May 21, 2019

अलका सिन्हा


अलका सिन्हा


अंतिम सांस तक



ग्राहक को कपड़े देने से ठीक पहले तक
कोई तुरपन, कोई बटन
टांकता ही रहता है दर्ज़ी।

परीक्षक के पर्चा खींचने से ठीक पहले तक
सही-गलत, कुछ न कुछ
लिखता ही रहता है परीक्षार्थी।

अंतिम सांस टूटने तक
चूक-अचूक निशाना साधे
लड़ता ही रहता है फौजी।

कोई नहीं डालता हथियार
कोई नहीं छोड़ता आस
अंतिम सांस तक।


ज़िन्दगी की चादर



ज़िन्दगी को जिया मैंने
इतना चौकस होकर
जैसे कि नींद में भी रहती है सजग
चढ़ती उम्र की लड़की
कि कहीं उसके पैरों से
चादर न उघड़ न जाए !

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সূচীপত্র

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