अलका सिन्हा
अंतिम सांस तक
ग्राहक को कपड़े देने से ठीक पहले तक
कोई तुरपन, कोई बटन
टांकता ही रहता है दर्ज़ी।
परीक्षक के पर्चा खींचने से ठीक पहले तक
सही-गलत, कुछ न कुछ
लिखता ही रहता है परीक्षार्थी।
अंतिम सांस टूटने तक
चूक-अचूक निशाना साधे
लड़ता ही रहता है फौजी।
कोई नहीं डालता हथियार
कोई नहीं छोड़ता आस
अंतिम सांस तक।
ज़िन्दगी की चादर
ज़िन्दगी को जिया मैंने
इतना चौकस होकर
जैसे कि नींद में भी रहती है सजग
चढ़ती उम्र की लड़की
कि कहीं उसके पैरों से
चादर न उघड़ न जाए !
वाह
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